दोस्तों सच कहे है लोग की ज़िंदगी और समय इंसान से क्या से क्या ना करा देता है, और समय बहुत बलवान ये कहावत चरितार्थ होता है, की समय के आगे कोई नहीं है, ज़िंदगी में इतने थपेड़े लगते है की आप कौन से किनारे लगोगे आपको भी पता नहीं चलेगा. मेरे साथ ही ऐसा हुआ, की जो पाक रिश्ते होते है सास दामाद को वो भी तार तार हो गया है, पर हालात से समझौता हो जाता है, और समय ऐसा मलहम है की अच्छे अच्छे घाव को भर देता है. मेरी भी ज़िंदगी यही है, मैं आज आपको अपनी पूरी कहानी बताने जा रही हु, आशा करती हु, आप को अच्छी लगेगी, ये मेरी सच्ची कहानी है,
मेरा नाम कल्पना है, मैं मध्यप्रदेश से हु, मैं 38 साल की हु, मेरी एक बेटी है सुरुचि जो की २० साल की है, मैं उसको बहुत प्यार करती हु, मेरे पति नहीं है, वो फ़ौज में थे और वो शहीद हो गया जब सुरुचि १० साल की थी, मैंने अपनी ज़िंदगी का दस साल कैसे बिताया मैं आपको कह नहीं सकती मैंने कैसे कैसे जिल्लत झेले, सुरुचि की शादी पिछले साल ही कर दी मैंने, सच पूछिए तो वो खुद से ही की अपने बॉय फ्रेंड के साथ, आप कहेंगे की १९ साल में ही शादी क्यों कर ली तो मैं आपको बता दू की वो शादी के पहले ही उसके पेट में उसके बॉय फ्रेंड राजीव का बच्चा पल रहा था, वो दोनों दिल्ली शिफ्ट हो गए, मैं अकेले ही रह गई थी, मुझे किसी चीज की कमी नहीं है मेरे पति का दिया हुआ काफी पैसा है पर जो नहीं है वो आपको पता है, मुझे जवानी में ही सेक्स का सुख ज्यादा नहीं मिला. मैं अपनी जवानी को जब से पति गए तब से तकिया के सहारे ही ज़िंदगी काटी.
सुरुचि अपने पति के साथ डेल्ही सेटल हो गई, पर उसका प्यार मुझे ज्यादा दिन अलग नहीं रख पाया, सुरुचि मुझे अपने पास लाने के लिए राजीव को भेजी, अब मैं भी दिल्ली में ही रहती, ट्रैन में इतना भीड़ था की हम दोनों का टिकट वेटिंग से आर ए सी तक रह गया, सेकंड क्लास ऐसी का टिकट थे, निचे बाले सीट हम दोनों को मिला, और हमलोग दिल्ली के लिए रवाना हो गए, रात को मेरी ट्रैन कानपुर क्रॉस करने लगी, सब लोग सो रहे थे, हम दोनों बैठे थे, बात चीत हो रही थी, राजीव का पैर मेरे जांघ को छु रहा था, मैं साडी पहनी थी, और ज्यादा कट का ब्लाउज जो की आगे से ज्यादा खुल था, इस वजह से मेरी चूचियाँ बाहर को झाँक रही थी, दोस्तों मैं हु तो ३८ साल की पर मेरा शारीर किसी २८ साल की औरत की तरह है, अब तो पहले से और भी सुन्दर हो गई थी, चेहरा भर गया है, चूचियाँ काफी टाइट है मैं योग करती हु, तो शारीर की बनावट काफी अछि है, राजीव मेरी चूचियों को निहार रहा था, पर उसका निहारना मुझे अछा लग रहा था, सच बताऊँ दोस्तों मैं तो ये भूल गई की राजीव मेरा दामाद है, और मैंने भी अपनी आँचल थोड़ा खिसका दी, मेरे दोनों बड़े बड़े सुडौल चुकी ब्लाउज में कसा हुआ दिखने लगा, उसके बाद मैं बाहर सीसे से झाँकने लगी, ताकि राजीव अपनी नजरों से मेरे चूक को अच्छे से निहार ले, थोड़े देर बाद मैं राजीव को गहरी तो वो एक लम्बी सांस ले रहा था, मैंने कहा राजीव मैं बैठती हु, तुम लेट जाओ, पर उसने कहा नहीं नहीं मम्मी जी आप ही लेट जाओ, मुझे अभी नींद नहीं आ रही है, और मैं लेट गई, राजीव पैर फैलाकर बैठा था, उसका पैर की ऊँगली मेरे चूतड़ को छूने लगी, धीरे धीरे वो अपने पैर से मेरे गांड को सहलाने लगा, मैंने सोने का नाटक कर रही थी, और वो मजे लूट रहा था.
उसके बाद थोड़े देर बाद मैं सीधा लेट गई और पैर फैला दी, और थोड़ा साडी को ऊपर खींच ली, और अपना पैर मैं राजीव के लौड़े के पास ले गई, हे भगवान् मोटा लैंड खड़ा था, एक दम टाइट नाग की तरह फनफना रहा था, पर मैंने सोने का नाटक करते हुए पैर को नहीं हटाई, अब राजीव अपना एक पैर मेरे दोनों पैरो के बिच में रख लिया और धीरे धीरे आगे करके, मेरे चूत तक ले गया, साडी तो घुटने तक थी ही अंदर कंबल में उसके बाद राजीव धीरे धीरे साडी को ऊपर कर दिया और मेरे चूत को अपने पैर से ही सहलाने लगा, मेरी चूत गीली हो जाने की वजह से मेरा पेंटी भी गीली हो चुकी थी, राजिव को समझ आ गया था की माँ जगी है, पर मैंने आँख नहीं खोली, वो धीरे धीरे साइड से अपना ऊँगली चूत के अंदर डालने की कोशिश करने लगा, पर मेरे चूत में बाल था इसवजह से मुझे दर्द होने लगा, मैंने अपना आँख खोल और राजीव को देखि, राजीव का चेहरा लाल हो गया था, मैंने उसको देखते हुए अपने ब्लाउज का ऊपर का सारे हुक खोल दिए और थोड़ा सा उचककर मैंने ब्रा का हुक खोल दिया,
राजीव मेरे होठ के पास आ गया, उसकी साँसे तेज चल रही थी, और आँखों में वासना की चमक था, उसके बाद वो मेरे पे टूट पड़ा, वो मेरे होठ को चूसने लगा और चूचियों को दबाने लगा, और फिर तो क्या बताऊँ नॉनवेज स्टोरी डॉट कॉम के दोस्तों, मेरा मन तो पागल होने लगा, मुझे अब राजीव का लण्ड चाहिए अपने चूत में, मैंने राजीव को अपनी बाहों में भर ली और सहलाने लगी, उसने मेरे चूत में ऊँगली करने लगा और फिर पेंटी उतार दिया, मैंने कहा सारा कपड़ा मत उतारो, ट्रैन है, फिर उसने बिच में बैठ कर, अपना लण्ड मेरे चूत के छेद पे लगाया और जोर जोर से पेलने लगा, मैं दस साल बाद चूद रही थी, मानो मेरा सुहागरात हो रहा हो, वो झटके पे झटके दे रहा था, और मैंने स्वर्ग का आनंद ले रही थी, मेरे मुंह से आह आह आह उफ़ उफ़ उफ़ उफ़ की आवाज आ रही थी और वो भी मुझे गालिया दे रहा था और चोद रहा था, उसके बाद उसने कहा मम्मी जी मुझे गांड मारना बहुत अच्छा लगता है, मैं तो सुरुचि को चूत से ज्यादा गांड ही मारता हु,
मैंने कहा आज तू चूत ही मार ले, क्यों की गांड में दर्द होगा तो मैं चिल्लाऊंगी, और लोगो को पता चल जायेगा, इसलिए तुम मुझे दिल्ली में जिस तरह से चोदना हो या गांड मारना हो, मार लेना अब तो मैं तुम्हारी हो गई हु, इतना कहते ही वो जोर जोर से तेजी से चोदने लगा, मैंने भी गांड उठा उठा के चुदवाने लगी, फिर तो ट्रैन की रफ़्तार के साथ साथ हम दोनों की रफ़्तार भी बढ़ गई, और फिर हमलोग मथुरा आते आते करीब तिन से चार बार झड़ चुके थे, डेल्ही पहुंची, कहना पीना खाये, और फिर हम लोग बेखबर सो गए, क्यों की रात को चुदाई हो रही थी,
शाम को एक रजिस्ट्री आई जिसमे जब का ट्रेनिंग लेटर था और उसकी जॉब लग गई थी, बैंक में उसको मुंबई जाना था, सुरुचि अकेली ही दूसरे दिन मुंबई चली गई, फिर तो क्या बताऊँ दोस्तों राजीव और मेरा रिश्ता पति पत्नी से बढ़कर हो गया, हम लोग अपने ज़िंदगी को खूब एन्जॉय कर रहे है, अब मैं मैं राजीव के बच्चे की माँ बन्ने बाली हो गई है, पर क्या करूँ समझ नहीं आ रहा है सुरुचि को पता जब चलेगा तो क्या कहेगी, क्या मैं अपने बच्चे को जन्म दू की नहीं, मैं अभी बहुत परेशां हु, आप ही मुझे रे दे क्या करूँ, पर जो भी हो मेरे प्यारे नॉनवेज स्टोरी डॉट कॉम पे दोस्तों ये ज़िंदगी मुझे काफी अच्छी लग रही है, मैं चाहती हु की ऐसा ही हमेशा मेरे चूत की गर्मी को राजीव शांत करता रहे,