श्रीराम शुक्ला अयोध्या में सुभाष इंटर कॉलेज के प्रिन्सिपल थे। वो हमेशा सफ़ेद कुरता पहनते थे। गले में रुद्राक्ष की माला , पैर में लाल रंग की चमड़े की सेंडल। शुक्ला जी सुबह 4 बजे उठकर यमुना नदी जाकर नहाते थे। पुर्व में उगते हुए सूर्य को जल देते थे। हनुमान चालीस, शिव चलिषा पढ़ते थे। इतना ही नही साल में एक बार वैस्नोदेवी या साई बाबा के दरबार जाकर मत्था टेकते थे। नवंबर आने पर वो जागरण करवाते थे। और महाकुम्भ आने पर कल्पवास करने जरूर जाते थे।
इस तरह शुक्ला जी बड़े धार्मिक विचार वाले आदमी थे। कोई 45 50 के होंगे। पर शुक्ल जी के अनेक चेहरे थे। दूसरा चेहरा अलग था। वो इलाहाबाद के शिक्षा निदेसलाय में जाकर घुस पानी दे आये और सुभाष इंटर कॉलेज के प्रिन्सिपल बन गए। उन्होंने अपना दूसरा चेहरा दिखाना शूरु किया।
पहले वो ठीक 7 बजे आते और 2 बजे जाते। जैसे 2 3 साल बीते शुक्ला जी जबरदस्ती पर आ गए। वो अब 7 बजे आते। कुछ रोज के काम करते जैसे टीचर्स से मिलना , हाथ मिलाना, उनकी रजिस्टर में हाजिरी लगवाना। सरकारी कागजो पर साइन करना आदि। फिर वो आधे घण्टे बाद अपने चश्मे को उतारके अपनी टेबल पर रख देते और गायब हो जाते।
उन्होंने बाबुओ को धमका रखा था की अगर मेरे कहने से नही चले तो उनकी वेतन भी रुकवा देंगे। और साइन नही करेंगे। इसलिए सभी बाबू उनसे डरते थे। शुक्ला जी का अब यही नियम बन गया। वो सुबह 1 घण्टे के लिये आते और अपना चस्मा खोल कर टेबल पर रख देते। जब कोई प्रिन्सिपल से मिलने आता तो बाबू बताते की साहब कहीं गए है। और सब जानते की साहब यही स्कूल में है।
धीरे 2 शुक्ला अपना रूप बदलने लग गए। वो बड़े अफसरों की खुसामद करने लगे। और उन्होंने अपने छोटे भाई को कॉलेज में सरकारी मास्टर बना दिया। फिर अपने सबसे छोटे भाई को भी मास्टर बना दिया। बड़े अधिकारयों को खिला पिलाकर उन्होंने अपने ताऊ के लड़के जो सिर्फ 10व पास था उसे चपरासी बना दिया। अब शुक्ला जी के परिवार के 4 लोग सुभाष इंटर कॉलेज ने नौकरी पा गए।
धीरे 2 शुक्ला जी की ताक़त बढ़ती गयी। स्कूल के दूसरे 20 मास्टर और बाबू ,चपरासी उनसे डरने लगा। श्रीराम शुक्ला जी बात करने में बहुत माहिर थे। बड़ा मीठा बोलते थे। पर उनका एक छिपा रूप था। एक दिन एक लेडीज झाड़ूवाली उनके प्रिन्सिपल रम में झाड़ू मारने गयी।
उसका नाम माया था। वो झाड़ूवाली कुर्मी जात की थी। पर जवान थी।
शुक्ला जी ने माया का हाथ पकड़ लिया।
ये क्या साहब ? क्या करते हो? मैं तो भंगन हुँ! माया बोली
माया मेरी जान, तो भंगन तो है, पर जवान है शुक्ला जी बोले
माया ने अपने हाथ पर कल्लू गुदवा रखा था। उसके मर्द का नाम।
शुक्ला जी के हाथ माया भंगन की छातियों पर चले गए। वो उसे पाना चाहते थे।
नही साहब, ये गलत है। मेरा मर्द कल्लू जान पायेगा तो आसमान ही फट पढ़ेगा माया बोली
किसी को पता नही चलेगा माया। तेरा 6 महीने का जो वेतन फसा है मैं उसे पास करवा दूंगा शुक्ला जी ने लोलीपोप दिया। माया का मर्द कल्लू साला ऐडा था। साला हमेशा पीकर पड़ा रहता था। माया को पैसो को बड़ी जरूरत थी। वो मान गयी।
शुक्ला जी माया की छातियों को मींजने लगे। पण्डित होने के नाते वो किसी भंगी के पास भी नहीं जाते थे, ना तो उसे छूटे थे। पर आज एक नया मॉल देखकर शुक्ला जी ने अपने उसूल बदल दिए थे। जहाँ देखि नारी वहां आँख मारी वाला उसूल अपना लिया था। शुक्ला जी ने एक चपरासी को गेट पर मुस्तैद कर दिया की किसी को अंदर ना आने थे। वो जरुरी काम कर रहे है। और माया की चुदाई में डूब गए।
एक भंगी होते हुए भी शुक्ला जी माया से चिपक गए। उसकी चुच्चियों पर हाथ फेरने लगे। उनको जोर 2 से दबाने लगे। जवान होने के नाते माया को भी मजा मिलने लगा। उसके हाथ से उसकी 5 फुट लम्बी झाड़ू नीचे गिर गयी। माया के बदन में हलचल होने लगी।
माया तुम मुझे हमेशा से खूबसूरत लगती थी शुक्ला जी बोले
माया चुप रही और चुदाई का मजा लेने लगी।
शुक्ला जी ने माया के चुच्चों पर से सारी हटा दी। सारी का पल्लू निचे गिर गया। माया के 2 खूबसूरत भरे हुए मम्मे शुक्ला जी को दिख गए। उन्होने ब्लाऊज़ के बटन खोलने सुरु किये। माया का पका अमरुद था गदराया भरा बदन शुक्ला जी को नजर आने लगा। माया भंगी थी पर बेहद खूबसूरत थी। रंग काला था पर जिस्म एकदम गदराया था। कोई भी मर्द उसे एक नजर देख लेता तो उनके लण्ड में हलचल हो जाती और यही सोचता की अगर एक बार माया की मिल जाती।
पर आज ये किस्मत तो शुक्ला जी खुलने वाली थी। उसके हलके से गंदे ब्लाऊज़ में कुल 6 हुक थे। 3 हुक खुलने के बाद शुक्ला जी को माया के रसीले मम्मे दिखे और वो उसे पिने दौड़े। उफ़्फ़ क्या कैसे हुए मम्मे थे। शुक्ला जी से जल्दी से बाकी हुक खोले तो पाया की माया अंदर ब्रा नही पहने है। और लप्प से उसकी छातियाँ शुक्ला जी के सामने आ गयी। उनकी जिंदगी ही बदल गयी। उन्होंने जल्दी से एक हाथ अपनी टेबल पर मारा और साडी फाइलों, कॉपी किताबों को निचे फेक दिया
बहनचोद, क्या करारा माल है शुक्ला जी के मुँह से निकल गया।
उन्होंने माया भंगन को टेबल पर गिरा लिया। और उसके फूले 2 मम्मे पिने लगे। उनको जिंदगी का मजा मिलने लगा। माया भी मजा लेने लगी। शुक्लाजी का मुँह माया की बड़ी 2 छातियों को पूरा 2 नही ले पाया पर उन्होंने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया। हपर हपर वो माया भँगी के मम्मे पिने लगे।
जवान माया की चूत भी गीली होने लगी। वो भी सोचने लगी की रोज अपने पियक्कड़ मर्द कल्लू से पेलवाती है , आज कुछ नया चखने को मिलेगा। उनकी चूत भी पानी छोड़ने लगी।
बड़ी देर तक मम्मे पिने के बाद शुक्ला जी ने अपने सफेद कुर्ते का नारा खोला और अपना बड़ा सा लौड़ा निकाला।
माया! चल चूस इसे वो बोले
माया भँगी शुक्ला जी के बड़े से लण्ड को देखकर डर गयी।
बहुत बड़ा है साहेब, मैं नही ले पाएगी माया बोली
शुक्ला जी ने झट से अपना बड़ा सा लण्ड माया भँगी के मुँह में पेल दिया। उसका मुँह जाम हो गया। उसे साँस भी नही आ रही थी। शुक्ला जी की धर्मपत्नी 7 साल पहले ही स्वर्गलोक पधार गयी थी और ये गाण्डू आज एक भंगन का धर्म बिगाड़ रहे थे। माया का मर्द पियक्कड़ था और कभी भी उससे लण्ड नही चुसवाता था। इसलिए माया को लण्ड चुसाई का एक्सपीरिएंस नही थी।
शुक्ला जी ने माया को कन्धों से पकड़ लिया और माया भंगन का मुँह चोदने लगी।
मेरे पानी को चाट जा, खासी जुकाम में फायदा देगा गाण्डू शुक्ला जी बोले।
वो दनादन माया का मुँह चोदने लगे। माया का ये फर्स्ट टाइम मुँह चुदाई थी। उसे बड़ा अजीब लग रहा था।
बहुत गन्दा लग रहा है साहेब। माया बोली
अरे झुकाम खासी में फायदा करेगा। शुक्ला जी बोले
सीधी साधी माया उनका लण्ड चूसने लगी। शुक्ला जी का लण्ड पत्तर जैसा सख्त होने लगा। वो दुगनी रफ़्तार से माया का मुँह चोदने लगे।
फिर उनकी एक नजर माया के रसीले मम्मो पर चली गयी और शुक्ला जी का पानी चूत गया। माया का सारा मुँह गन्दा हो गया। एक सेकंड में शुक्ला के चेहरे पर उदासी छा गयी। ये उनकी छुपी हुई चुदास की उदास थी। अब वो जवान माया भंगन को कैसे पेलेंगे।
अब कैसे करोगे साब? माया ने पूछा
शुक्ला जी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी। आज इतना चिकना माल हाथ लगा। और इसे चोदने ने पहले मैं झड़ गया। लानत है मुझ पर शुक्ल जी सोचने लगा। उन्होने झट से अपनी पैंट पहली। बाहर गए और बाबू को 100 रुपए का नोट दिया।
सुन जा विगोरा 500 के 2 कैप्सूल ले आ और देख किसी से इसके बारे में जिक्र किया तो मुझसे बुरा कोई नही होगा। श्रीराम शुक्ला जी ने एक बार फिर से बाबू को धमकाया।
वो कुछ देर में गोली ले आया। शुक्ला जी ने झट से आपने कमरे में रखे जग का पानी उठाया और दोनों कैप्सूल गटक गए।
कुछ सेकंड में खड़ा हो जाएगा माया शुक्ला बोले।
10 मिनट में ही उन्हें बदन गर्म होने लगा। उन्हें हरारत होने लगी। और शुक्ला जी का खड़ा होने लड़ा। और लण्ड फूल के 12 इंच का हो गया। माया भंगन की गाड़ पट गयी। शुक्ला जी के चेहरे पर मुस्कान लौट आई। वो जान गए की अब वो माया को अच्छी तरह चोद लेंगे।
शुक्ला जी से माया की काले रंग की साडी उठा दी। फिर पेटीकोट उठा दिया। माया बहुत गरीब थी। 6 महीने से वेतन भी नही मिला था। इन दिनों उसके पास चड्ढी पहनने के भी पैसे नही थे। शुक्ला जी ने देखा की माया बिना चड्ढी के है। उनकी बांछे खिल गयी। वो माया भंगन की चूत पर टूट पड़े। क्या मस्त रसीली चूत थी।
जब आज कमरे में माया झाड़ू मारने आई थी तो उसकी चूत बिलकुल सुखी थी। पर शुक्लाजी के काम से माया की चूत रसीली हो गयी थी। बड़ी प्यारी सी चिड़िया थी। माया का मर्द अपनी औरत की इस चिड़िया को ढंग से नही उड़ा पाता था। चूत साफ थी, एक भी घास नही थी।
अरे माया , तू तो बनाकर रखती है शुक्ला जी बोले
हाँ साहेब, मेरा मर्द हफ्ते में सिर्फ एक बार लेता है पर उसको साफ करके ही मांगता है माया बोली
शुक्ला जी माया की इस चूत को चाटने लगे किसी प्यासे कुत्ते की तरह। कहाँ शुक्ला जी किसी भंगी , चमार को छुना भी पाप समजते थे। और आज उसी भंगी की बुर चाट रहे थे। माया को बड़ा सुख मिलने लगा क्योंकि उसका मर्द कल्लू गाण्डू था। खूबसूरत बीबी का चोदन कैसे करना था, वो जानता ही नही था। वहीँ श्रीराम शुक्ला जी पुराने ज़माने के ऐयाश थे। किसी भी हसीं औरत को देख उनका खड़ा हो जाता था।
शुक्ला जी ने अपना जनेऊ ठीक किया, किनारे खिसकाया चुदाई जैसा गन्दा और अपवित्र काम करते जनेऊ ना बिच में आ जाए। माया के खूबसूरत भोसड़े पर अपना बड़ा सा 10 इंच लम्बा गधे जैसा लण्ड रखा। एक दो बार माया के भोसड़े पर ऊपर से निचे रगड़ा, तो वो भँगन कांप उठी। और फिर शुक्ला जी ने गच स पेल दिया अपना बड़ा सा लण्ड। माया ने कमर उठाके लण्ड ले लिया।
शुक्ला जी ने माया को भांजना शुरू किया। वो अपनी बड़ी सी ऑफिस की टेबल का बढ़िया इस्तेमाल कर रहे थे। शुक्ला जी रंडापे में बुर का मजा लेने लगे। माया से अपनी जवान टांगे फैला ली। और मजे से लण्ड खाने लगी। आज इत्तफाक से माया को असली मर्द मिला था। वो चुदाई सागर में दुब गयी और नहाने लगी। शुक्ला जी गचा गच्च उसे पेले जा रहे थे। कुछ देर बाद वो कुछ देर के लिये आराम करने लगी तो माया बोली
ऐ साब करना….करना… माया ने बिनती की।
शुक्ला जी को मजा आ गया। जब औरत खुद कहे की मेरी चूत फाड़ दो तब तो मर्द को जोश आएगा ही। शुक्ला जी तेजी से माया भँगन को पेलने लगे। इसी पेलाई में डाकिया सरकारी कागज लेकर आया। कुछ और लोग भी प्रिन्सिपल साहेब से मिलने आये। पर वफादार बाबू ने किसी को भी प्रिन्सिपल रूम में नही जाने दिया। अंदर धकाधक पेलाई चल रही थी। सुबह 10 बजे की बात की।
विचित्रि बात थी की कोई भी अधिकारी दिन में तो कॉलेज में किसी औरत को नहीं भजतां है , पर शुक्ला जी शेर दिल आदमी दे। दिन में ही सरे काले काम करते थे। चुदाई का पहला राउंड खत्म हुआ तो शुक्ला जी ने माया भँगन की बुर में ही अपना माल छोड़ दिया। वो माया को अभी और चोदना चाहते थे।
विगोरा 500 के 2 कैप्सूल का असर था की शुक्ला जी का असलहा फिर खड़ा हो गया कुछ देर बाद। माया भँगन इस बिच केवल 2 घूँट पानी ही पी पायी। वो भी आज निहाल हो गयी थी। कहाँ आई थी झाड़ू मारने और कहा लण्ड पा गयी। दूसरे राउंड में शुक्ला से उसकी गाण्ड चोदने का प्लान बनाया।
माया , अब मैं तेरी गाण्ड चोदूंगा, थोडा दर्द होगा। सह लेना। फिर बाद में मजा मिलेगा शुक्ला जी बोले
उन्होंने माया को अब पेट के बल ऑफिस टेबल पर लेता दिया। और गांड देखी..
अरे माया तेरी गांड तो कुवारी है? वो हसकर बोले मुस्काकर
साहब मेरा मर्द चुदाई में बड़ा पीछे है। उसे तो बस खम्बे में मजा आता है माया बोली
देख , आज मैं तेरी गांड को सील तोड़ दूंगा शुक्ला बोले
उन्होंने ढेर सारा थूक दिया और थोडा माया भँगन की गांड पर मला, और बाकी अपने लौड़े पर मला और पेल दिया। एक जोर का धक्का दिया और माया भँगन की गांड फट गयी। वो दर्द से सिसकने चीखने लगी। माया के चेहरा दर्द से सिकुड़ गया।
साहब निकाल लो, बड़ा दर्द हो रहा है। माया बोली
अरे 2 मिनट रुक, तुझसे बड़ा मजा आएगा। गाण्डू शुक्ला जी बोले
और मजे लेकर माया भँगन को गांड चोदने लगे अपने जनेऊ को एक किनारे खिसककर। पुरे कॉलेज में शुक्ला जी के इस ठरकी बुड्ढे वाले रोल को कोई नही जनता था। केवल उनका विश्वासपात्र बाबू ही जानता था।
बाहर सब मास्टर अपने 2 कमरों में बच्चों को पढ़ा रहे थे। वहीँ दुसरो ओरे प्रिन्सिपल साब माया भँगन को चुदाई की क्लास दे रहे थे। कोई भी मास्टर इस बात की कल्पना नही कर सकता था की इस समय 10 बजे हमारे कॉलेज में ही चुदाई की गरमा गर्म क्लास चल रही थी। बिचारे सरे मास्टर मोटी 2 किताबों में अपनी आँखे कमजोर कर रहे थे वहीँ उनके मुखिया आदरणीय प्रिन्सिपल साहेब माया के मस्त रसीले छातियों और उसकी मस्त रसीली बुर देककर आँखे तेज कर रहे थे।
शुक्ला जी ने माया की गांड जमकर चोदी। और फिर अपना लण्ड निकाल लिया। माया भँगन बिलकुल चोदवासी हो गयी। वो एक बार फिर से शुक्ला जी का लण्ड चूसने लगी। चुसाई के बाद फिर शुक्ला जी से उसकी चूत मारी। माया भँगन मन ही मन भगवान को धन्यवाद देने लगी की आज उसे एक शेर दिल मर्द और उनका लण्ड खाने को मिला। कुछ देर बाद चुदाई का राउंड खत्म हुआ और शुक्ला जी से अपना मॉल उसकी बुर में ही चोद दिया।
यारों, इस तरह आपको पता चला गाण्डू श्रीराम शुक्ला जी की असलियत।